ये जहाँ तुने कैसा बनाया खुदा !
यहाँ किसको किसीका भरोसा नहीं,
साथ देते हुए आदमीको यहाँ ,
देखिये आदमीका भरोसा नहीं,
शमा जल जाएगी,रात ढल जाएगी ,
अब हमें रौशनी का भरोसा नहीं,
अबतलक हम तुम्हारे भारीसे जिए,
अब हमे जिद्गिका भरोसा नहीं।
किस तरह तुमको समजाये हमनशी !
कि मुझे क्यों किसीका भरोसा नहीं ???
ज़ख्म फुलोंसें खा कर समाज आ गयी
अब चमन में किसीका भरोसा नहीं......................................
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